Tuesday, May 5, 2015

तुम


एक वक़्त था जब दिल के कोने में कही
कोहराम मचाये रहते थे तुम
कभी कभी एहसास भी होता है कि
हो तो तुम वही किसी कोने मे
पर कहा हो पता नहीं चलता...

अब भी खयालो में आते हो तुम
कुछ फर्क है पर
अब समझ में आने लगा है
अपनी मर्जी से आना अपनी मर्जी से जाना
तब तूफ़ान की तरह अब मेहमान की तरह
कब रुखसत हुए पता नहीं चलता...

समझ न पाये की हक़ है तुम्हारा
ये इस दिल पे तुमने जबरन कब्ज़ा किया है
न आ पाया कोई आ न पायेगा कभी
क्या कोई ऐसा भरम फैला दिया है
मुद्दतो से कितनी कोशिश भी की
कि मिल जाओ कही तो पूछे जरा
पर ढूंढे कहा पता नहीं चलता...

न उम्मीद है न कोई ख्वाहिश रही
न तुम्हे पाने कि कोई गुजारिश रही
न तुमने जाना कभी पर अनजाने में सही
बनाया क्या, क्या दिया तुमने मुझको
कभी कभी शायद इसलिए फ़िक्र हो जाती है
कैसे होगे तुम खुद से ही जिक्र हो जाती है
आरजू है बदले में कर पाएंगे कुछ
पर कैसे पता नहीं चलता...

हो तुम वही कही दिल के किसी कोने में
पर कहा हो पता नहीं चलता...

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